Friday 18 October 2013

चंद्रमा की पूर्णता की रात शरद पूर्णिमा

@jiteshtrapasiya

शरद पूर्णिमा को कृष्ण रास लीला करते हैं, मां लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं, ऐसी बहुत-सी मान्यताएं प्रचलित हैं। साथ ही वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह रात्रि स्वास्थ्य और सकारात्मकता प्रदान करने वाली मानी जाती है। शरद पूर्णिमा का महत्व बता रहे हैं डॉ. दत्तात्रेय होस्केरे

जब से प्रकृति अस्तित्त्व में आई और रात्रि के समय होने वाली प्रकाश वर्षा से मनुष्य का साक्षात्कार हुआ, तभी से चंद्र की चमक और उसका प्रकाश जिज्ञासा का विषय रहा है। हालांकि विज्ञान ने चंद्रमा के सम्बंध में उठ रही बहुत सी जिज्ञासाओं को शांत किया है, लेकिन उसकी अप्रतिम छटा और उसके आकार के बढ़ने और घटने का मनुष्य के मस्तिष्क पर पड़ने वाला प्रभाव आज भी शोध का विषय है। ऋग्वेद के ‘पुरुष सूक्त’ की एक ऋचा में चंद्र को ‘चंद्रमा मनसो जात:’ कह कर सम्बोधित किया गया है, अर्थात चंद्रमा मन का कारक है और मन सम्बंधी सभी तत्त्व, जैसे- हास्य, करुणा, अवसाद और क्रोध सभी चंद्र द्वारा संचालित होते हैं। हमारे त्योहारों की श्रृंखला में वर्ष की सबसे काली रात यानी कार्तिक अमावास्या को हम दीपावली का पर्व मनाकर हर घर को प्रकाशित करते हैं। इसके ठीक पंद्रह दिन पहले आश्विन मास की पूर्णिमा पड़ती है, जिसे ‘शरद पूर्णिमा’ के नाम से जाना जाता है। इसे ‘कोजागरी पूर्णिमा’ भी कहते हैं। वैसे तो इस पूर्ण चंद्र की सुंदर रात्रि के सम्बंध मे बहुत सी कथाएं हैं, लेकिन तथ्यात्मक दृष्टि से वर्ष की सबसे काली अमावास्या के पूर्व पड़ने वाली यह रात्रि अत्यंत मोहक और लुभावनी होती है। 
‘श्री सूक्त’ में लक्ष्मी जी को ‘चंद्रां हिरणयमयीं लक्ष्मीं’ कह कर सम्बोधित किया गया है, अर्थात ऐश्वर्य और सभी सुखों की अधिष्ठात्री देवी मां लक्ष्मी चंद्र की पूर्णता से आह्लादित होती हैं। साथ ही  शास्त्रों में पूर्णिमा के चंद्र की आभा की तुलना शिवजी के हास्य से की गई है। यानी सभी आराधनाओं में शरद ऋतु के चंद्र और विशेष रूप से शरद पूर्णिमा के चंद्र का माहात्म्य विशेष है।

एक कथा विशेष है, जिसमे दो बहनों की आराधनाओं में भेद और उससे सम्बंधित परिणामों के बारे में बताया गया है। पूर्ण आराधना करने वाली बहन को संतान की प्राप्ति होती है और कम आराधना करने वाली छोटी बहन को संतान सम्बंधी समस्या बनी रहती है। एक बार संतान होती है तो वह भी मृत होती है। किसी संत के कहने पर वह अपनी बड़ी बहन से उस मृत संतान को स्पर्श करा देती है, जिससे संतान जीवित हो जाती है। कथा का प्रेरक पहलू यह है कि चंद्र की दिव्य पूर्णता पर किया गया व्रत मनुष्य को ऊर्जावान बनाता है। इस पूर्णिमा को ‘कौमुदी पूर्णिमा’ या ‘रास पूर्णिमा’ की संज्ञा इसीलिये दी गई है, क्योंकि इस पूर्णिमा की रात्रि को भगवान श्रीकृष्ण गोपियों के साथ रास रचाते हैं, ऐसी मान्यता है। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इसी दिन रास रचाने का कारण भी यही है कि इस रात्रि को चंद्र अपनी पूर्णता को प्राप्त करता है यानी पूर्ण सोलह कलाओं से युक्त होता है।

शिवजी के बारे में शास्त्रों में वर्णन है कि उनके शीश पर टेढ़ा चंद्र भी शोभायमान होता है। यदि शरद पूर्णिमा को शिवजी को खीर का भोग लगाया जाए तो मानसिक और शारीरिक लाभ होता है। आयुर्वेद में जड़ी-बूटियों से एक ऐसी औषधि भी विकसित की गई है, जिसका शरद पूर्णिमा को पूर्ण विधान से सेवन किया जाए तो शीत सम्बंधी और अस्थमा जैसे असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि जागरण का प्रावधान है। इसे ‘कोजागरी पूर्णिमा’ कहने का कारण भी यही है। कोजागरी, संस्कृत शब्द कोजागृति का सरल रूप है। शास्त्रों में उल्लेख है कि मां लक्ष्मी दीपावली के पंद्रह दिन पहले रात्रि के समय पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और पूछती हैं- को जागृति? अर्थात कौन जाग रहा है? और जो भी जाग रहा होता है, उसे वे इच्छानुकूल वरदान देती हैं।

इस रात्रि को अपने कुल देवता की आराधना, शिवजी का दूध से अभिषेक, भगवान श्रीकृष्ण का श्रृंगार और लक्ष्मी जी का ‘श्रीसूक्त’ के द्वारा अभिषेक अत्यंत लाभदयक होता है। बड़े समूह द्वारा खुले मैदान में खीर बना कर सबके बीच बांटने से लोगों के बीच सामंजस्य बढ़ता है।


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